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Manish Mahawar

@anonymous

I'm an undergraduate student from IIITM Gwalior. लेखनी ने दे दिए स्वर गीत मैं गाता रहा कागजों में रंग भरकर सत्य झुठलाता गया एक अनचाहा समर्पण और बस कुछ भी नहीं एक हरियाया हुआ तृण और बस कुछ भी नहीं

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यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे

गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे 
यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे 
  
गूँज उठी सुधियों नूतन नमराइयाँ 
कूँक रहे कण्ठ आज दर्द की रुबाइयाँ   
डूब गए गागर में सागर रतनारे 
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे   
  
झूमती हवाओं ने गीत रचे सौरभ के 
किरणों ने तार कसे अनुपम सुर सरगम के 
ऐसे में पहचाना स्वर कोई पुकारे
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे   
  
शिखर चढ़े यौवन की प्यास बहुत बढ़ गयी 
पूनम का कलश लिए चाँदनी उतर गयी 
प्राणों ने दर्द पिए लाज के सहारे
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे   
  
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे 
यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे 

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