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मदन मोहन" मैत्रेय

@केशव

नाम-मदन मोहन "मैत्रेय पिता-श्री अमर नाथ ठाकुर रतनपुर अभिमान, दरभंगा, बिहार रतनपुर 847307 आप की पुस्तक कविता संग्रह "वैभव विलास-काव्य कुंज""भीगी पलकें" एवं "अरुणोदय" तथा उपन्यास "फेसबुक ट्रैजडी" "ओडिनरी किलर" एवं "तरुणा" पेपर बैक में प्रकाशित हो चुकी है। तथा आप अभी "भक्ति की धारा-एकाकार विश्वरुप स्वरुप" पर कार्य कर रहे हैं।

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काव्य कुंजिका

न जाने क्यों?...यादों का सिलसिला।

बीते हुए लमहों की कई हसरतें।

बीता हुआ कल और बीती हरकतें।

याद आते है वो दरख्त" जो थे कभी अपने।

उम्मीदों के असर में शहर भर घूमता था।

कभी-कभी अमराईयों में जमी को चूमता था।।


याद आने लगा है वो बीता हसरतों का कल।

बिताए हुए पगडंडियों पर यूं ही कई पल।

ठहाकों की गुंज और हृदय में भाव निश्छल।

यारों की टोलियों में कभी-कभी वो हलचल।

आईना सा था जो तालाब, खुशी में झूमता था।

कभी-कभी अमराईयों में जमी को चूमता था।।


बीती रात भी तो बेवाकियों में गुजारा था मैं।

सफर चलते पगडंडियों पे खुद को पुकारा था मैं।

खुद को समझ लूं, कई लमहों को यूं गुजारा था मैं।

खुद के लिए, खुद को कई पल तक संवारा था मैं।

कल तलक तो खुद को परछाइयों में ढूंढता था।

कभी-कभी अमराईयों में जमी को चूमता था।।


फिर जो है ये सवाल कब से!....न जाने क्यों?

याद आने लगा है जो बीते हुए पल की बातें।

वह जो हृदय में हसरतें अधूरे-अधूरे रह गए है।

कुछ तो हाथों में आई कलियाँ, कुछ मिले काटें।

बीते हुए पल की कई बातें, शोर सा गुंजता था।

कभी-कभी अमराईयों में जमी को चूमता था।।


न जाने क्यों?...याद है, जो अब ऐसे आने लगे।

बीती हुई रातों की कहानी, आकर लुभाने लगे।

वह बीता हुआ हसरतों का दौर, आकर सताने लगे।

वो उम्मीद जो अधूरा था, उभड़ कर जलाने लगे।

सपनों की वो अठखेलियां, जो आँखें मुंदता था।

कभी-कभी अमराईयों में जमी को चूमता था।।







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