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मदन मोहन" मैत्रेय

@केशव

नाम-मदन मोहन "मैत्रेय पिता-श्री अमर नाथ ठाकुर रतनपुर अभिमान, दरभंगा, बिहार रतनपुर 847307 आप की पुस्तक कविता संग्रह "वैभव विलास-काव्य कुंज""भीगी पलकें" एवं "अरुणोदय" तथा उपन्यास "फेसबुक ट्रैजडी" "ओडिनरी किलर" एवं "तरुणा" पेपर बैक में प्रकाशित हो चुकी है। तथा आप अभी "भक्ति की धारा-एकाकार विश्वरुप स्वरुप" पर कार्य कर रहे हैं।

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काव्य कुंजिका

हृदय वेधने को तत्पर मन के भाव।

एक तो लहर तेज है जीवन नदिया की।

हलचल मचा हुआ है, आता है तूफान।

आकांक्षा के प्रबल वेग से बना हुआ हैरान।

अवसर आने की इच्छाएँ, फूलों सा खिल लूंगा।

जीवन तुम ठहरो तो, आते-जाते तुम्हें मिलूंगा।।


मतलबी सा है शहर, इसकी गलियां अंजान।

कहता हूं, यहां पर होता है अंजाना सा व्यापार।

इसके नियमों का जो द्वंद्व, बना हृदय पर भार।

मन में आशाओं का वेग, खेल रहे अजीब से दाव।

मधुमय उत्सव के संग, फूलों सा खिल लूंगा।

जीवन तुम ठहरो तो, आते-जाते तुम्हें मिलूंगा।।


पढने को हूं अब तत्पर, सांसारिक नियमों को।

समझूंगा, हृदय पर गहरे मिलते कहां से घाव।

अनुनय-विनय के गणित बिठा कैसे मिलते लाभ?

हृदय में जो पाला लोभ, इसका होगा कहां प्रभाव?

अनुशंसा कर लूंगा खुद से, फूलों सा खिल लूंगा।

जीवन तुम ठहरो तो, आते-जाते तुम्हें मिल लूंगा।।


विकलता जो, हृदय पर आकर बोझ बढाए।

मैं उन्मुक्त हो गाऊँगा गीत, मधुर भावमय संग।

कभी मिले शीतल सुगंध जीवंत सहृदयता के शीत।

मन उपवन के आँगन में बिखराऊँ कोमल रंग।

कहता हूं प्रशंसा से अलग रहूंगा, फूलों सा खिल लूंगा।

जीवन तुम ठहरो तो, आते-जाते तुम्हें मिल लूंगा।।


दुःख के भाव, हृदय अधिक वेध जो देंगे।

कहता तो हूं, खुद ही से इसका उपचार करूंगा।

गा कर गीतों के पद , सौम्य ठहरा व्यवहार करूंगा।

हृदय के अधिक विकल होने पर नूतन श्रृंगार करूंगा।

छोड़ूंगा भी आगे के शब्दों को, फूलों सा खिल लूंगा।

जीवन तुम ठहरो तो, आते-जाते तुम्हें मिल लूंगा।।

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