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मदन मोहन" मैत्रेय

@केशव

नाम-मदन मोहन "मैत्रेय पिता-श्री अमर नाथ ठाकुर रतनपुर अभिमान, दरभंगा, बिहार रतनपुर 847307 आप की पुस्तक कविता संग्रह "वैभव विलास-काव्य कुंज""भीगी पलकें" एवं "अरुणोदय" तथा उपन्यास "फेसबुक ट्रैजडी" "ओडिनरी किलर" एवं "तरुणा" पेपर बैक में प्रकाशित हो चुकी है। तथा आप अभी "भक्ति की धारा-एकाकार विश्वरुप स्वरुप" पर कार्य कर रहे हैं।

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काव्य कुंजिका

घूमर" लेत हिया प्रेम।

बातही-बात उमंग जगे हिया।

मधुमय भाव रस जगे प्रेम हिया।

मोती जड़ित अनोखो रंग प्रेम हिया।

जब ते नैनन से नैन मिलाये लियो।

प्रिय छवि तब से हिया बसाये लियो।।


जब जगे हृदय प्रेम मधुर रस राग।

छाये जीवन में नव-नूतन रस फाग।

जब ते जगे हृदय में प्रेम की आग।

खिले हृदय के कुंज, ज्यों बसंत में बाग।

जब ते प्रेम सुधा रस छक के पाये लियो।

प्रिय छवि तब से हिया बसाये लियो।।


मन भाव जगे प्रीतम का अनुराग।

गाऊँ प्रेम से प्रेम भाव में भीगा राग।

भाव में विह्वल हूं, जो लगे प्रेम की आग।

विहरुं कूंजन में लिए विरह का भाव।

जब ते प्रेम जगे, धन जीवन का पाए लियो।

प्रिय छवि तब से हिया बसाये लियो।।


हृदय में प्रेम अब लेती है अंगड़ाई।

मन में उठते अजब-गजब हिलोर।

प्रेम रस में भीग होता रहा विभोर।

जब ते मन बंधा मधुर प्रेम की डोर।

जब ते प्रेम जगे, होंठों से मुसकाये लियो।

प्रिय छवि तब से हिया बसाये लियो।।


घूमर लेत हिया प्रेम, लिपटे रंग कई।

प्रिय मिलन की चाह, उठे तरंग कई।

प्रेम के कोमल पुष्प, लिपटे भुजंग कई।

रात चांदनी सी, गगन में तारे संग कई।

जब ते प्रेम जगे, मानिक-मोती पाये लियो।

प्रिय छवि तब से हिया बसाये लियो।।





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